देव शयनी एकादशी
देव शयनी एकादशी (ग्यारस) का महत्व
देव शयनी एकादशी या शयनी एकादशी को सभी एकादशी के दिनों में सबसे पवित्र माना जाता है, विशेष रुप से वैष्णव हिंदू जो भगवान विष्णु को सर्वोच्च भगवान मानते हैं
शयनी एकादशी को महा एकादशी, पद्मा एकादशी, आषाढ़ी एकादशी, हरिशयनी एकादशी, भी कहा जाता है
यह एकादशी भारतीय चंद्र कैलेंडर के आषाढ़ महीने में चंद्रमा के शुक्ल पक्ष चरण में एकादशी तिथि को आती है
अंग्रेजी कैलेंडर मैं तारीख जून से जुलाई के बीच कहीं आती है
आषाढी एकादशी पर, हिंदू भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की पूजा करते हैं और सर्वोच्च भगवान को प्राप्त करने के लिए उपवास करते हैं
2023 में आषाढी एकादशी कब है-
देवशयनी एकादशी 2023, 29 जून गुरुवार को है
2024 में देवशयनी ग्यारस कब है
देवशयनी एकादशी 2024, बुधवार 17 जुलाई को है
आषाढी एकादशी व्रत और पूजा अनुष्ठान-
आषाढी एकादशी के दिन पवित्र स्नान करना बहुत शुभ माना गया है
भगवान विष्णु के अवतार श्री राम के सम्मान में गोदावरी नदी में डुबकी लगाने के लिए भी बड़ी संख्या में भक्त नासिक पहुंचते हैं
एकादशी के दिन भक्त चावल, अनाज आदि विशिष्ट सब्जियों और मसालों जैसे खाद्य पदार्थों से परहेज करके उपवास रखते हैं
इस दिन व्रत रखने से साधक जीवन की सभी समस्याओं व तनाव का समाधान कर सकता है
भक्त भगवान की मूर्ति को गदा, चक्र, शंख और चमकीले पीले वस्त्रों से सजाते हैं
प्रसाद के रूप में अगरबत्ती फूल सुपारी और भोग अर्पित किए जाते हैं
पूजा अनुष्ठान के बाद आरती गाई जाती है और प्रसाद को भक्तों में बांटा जाता है
आषाढी एकादशी पर इस व्रत के पालन करता, भगवान विष्णु की स्तुति में धार्मिक भजन, धार्मिक गीत और नाम का जाप करते हैं
विष्णु सहस्त्रनाम जैसे धार्मिक ग्रंथों का पाठ करना भी बहुत शुभ माना जाता है
आषाढी एकादशी का महत्व-
आषाढी एकादशी की महानता पहले भगवान ब्रह्मा ने अपने पुत्र नारद को और बाद में भगवान कृष्ण ने राजा युधिष्ठिर को सुनाई थी जो पांडवों में सबसे बड़े थे
शयनी एकादशी सबसे महत्वपूर्ण एकादशी व्रत में से एक है जिसे पहले एकादशी के रूप में भी मनाया जाता है यह एक लोकप्रिय धारणा है कि जो कोई भी इस एकादशी व्रत को पूरी प्रतिबद्धता के साथ करता है उसे सुखी समृद्ध और शांतिपूर्ण जीवन का आशीर्वाद प्राप्त होता है
सांसारिक सुखों को भोग करने के बाद अंततः मोक्ष की प्राप्ति होती है आ
आषाढी एकादशी उस समय आती है जब भगवान विष्णु शेषनाग पर क्षीरसागर में सोते हैं इसलिए इसका नाम हरि शयनी एकादशी पड़ा है
हिंदू किवदंतियों के अनुसार भगवान विष्णु अंत में 4 महीने बाद प्रबोधिनी एकादशी के दिन जागते हैं
भगवान विष्णु की इस नींद की अवधि को चातुर्मास के रूप में जाना जाता है और यह बरसात के मौसम से मेल खाता है
देवशयनी एकादशी या शयनी एकादशी चातुर्मास अवधि की शुरुआत का प्रतीक है
इस दिन भक्त भगवान विष्णु के आशीर्वाद का आवाहन करने के लिए पवित्र उपवास रखते हैं।