अटूट भक्ति: श्रवण कुमार के बलिदान की कथा | sharvan kumar katha in hindi

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अटूट भक्ति: श्रवण कुमार के बलिदान की कथा

sharvan kumar katha in hindi 


पितृ भक्त श्रवण कुमार


श्रवण कुमार की कहानी प्राचीन भारतीय पौराणिक कथाओं की एक मार्मिक और गहरी मार्मिक कहानी है। यह श्रवण कुमार नामक एक समर्पित पुत्र के इर्द-गिर्द घूमती है, जो पितृभक्ति और निस्वार्थता के गुणों का प्रतीक है।






श्रवण कुमार का जन्म एक साधारण परिवार में हुआ था और उनका पालन-पोषण उनके माता-पिता ने बड़े प्यार और देखभाल से किया। जैसे-जैसे वे बड़े होते गए, वे अंधे होते गए और श्रवण कुमार ने उनकी आँखें और सहारा बनने का बीड़ा उठाया। उन्होंने समर्पित भाव से अपने माता-पिता की सेवा की, वे जहाँ भी गए, उनका मार्गदर्शन किया और अटूट समर्पण और प्रेम के साथ उनकी हर ज़रूरत को पूरा किया।




एक दिन, कई वर्षों तक अपने माता-पिता की सेवा करने के बाद, उन्होंने आशीर्वाद लेने के लिए विभिन्न पवित्र स्थानों की तीर्थ यात्रा पर जाने की इच्छा व्यक्त की। उनकी वृद्धावस्था और देखने में असमर्थता के बावजूद, श्रवण कुमार ने उनकी इच्छा पूरी करने की जिम्मेदारी सहर्ष ली। उसने सावधानीपूर्वक यात्रा की तैयारी की, उनके आराम की व्यवस्था की और उनके साथ पैदल ही निकल पड़ा।




अपनी तीर्थयात्रा के दौरान, उन्होंने कई पवित्र स्थलों का दौरा किया, और श्रवण कुमार के माता-पिता उनकी निस्वार्थ भक्ति के लिए बेहद आभारी थे। जब वे यात्रा कर रहे थे, तो उनका सामना कई यात्रियों से हुआ, जिनमें से प्रत्येक उस युवक के अपने माता-पिता के प्रति गहन समर्पण से प्रभावित हुआ।




तीर्थ करते समय वे तीनों अयोध्या नगरी पहुँचते हैं,

तब माता पिता श्रवण से कहते हैं कि उन्हें प्यास लगी हैं .

श्रवण कावड़ को जंगल में रखकर, सरयू नदी से जल लेने जाता हैं .

उसी समय, उस वन में अयोध्या के राजा दशरथ शिकार पर निकले थे और उस घने वन में वह हिरण को शिकार के लिए उसके पीछा कर रहे थे,

तब उन्हें घने जंगल में झाड़ियों के पार सरयू नदी से पानी के हल चल की आवाज आती हैं ,

उस हलचल को हिरण के पानी पिने की आवाज समझ कर महाराज दशरथ शिकार के उद्देश्य से तीर चला देते हैं 
और उस शब्द भेदी तीर से श्रवण कुमार के हृदय को आघात पहुंचता हैं

जिससे उसके मुँह से पीड़ा भरी आवाज निकलती हैं जिसे सुन दशरथ स्तब्ध रह जाते हैं 
और उन्हें एक अनहोनी का अहसास होता हैं और वे भागकर सरयू नदी के तट पर पहुंचते हैं, 
जहाँ वे अपने तीर को श्रवण के ह्रदय में लगा देख भयभीत हो जाते हैं 
और उन्हें अपनी भूल का अहसास होता हैं . 
दशरथ, श्रवणकुमार के समीप जाकर उससे क्षमा मांगते हैं, 
तब अंतिम सांस लेता श्रवण कुमार महाराज दशरथ को अपने वृद्ध नेत्रहीन माता पिता के बारे में बताता हैं 
और कहता हैं कि वे प्यासे हैं उन्हें जाकर पानी पिला दो 
और उसके बाद उन्हें मेरे बारे में कहना 
और इतना कह कर श्रवण कुमार मृत्यु को प्राप्त हो जाता हैं . 
भारी ह्रदय के साथ महाराज दशरथ श्रवण के माता पिता के पास पहुँचते हैं 
और उन्हें पानी पिलाने लगते हैं पर 
माता पिता आश्चर्य से पूछते हैं उनका पुत्र कहा हैं ? 
वे भले ही नेत्रहीन हो, पर वे दोनों अपने पुत्र को आहट से ही समझ लेते थे . 
माता पिता के प्रश्नों को सुन महाराज दशरथ उनके चरणों में गिर जाते हैं 
और बीती घटना को विस्तार से कहते हैं . 
पुत्र की मृत्यु की खबर सुनकर माता पिता रोने लगते हैं 
माता पिता बहुत जोर-जोर से विलाप करने लगते हैं, 
उनके विलाप को देख महाराज दशरथ को अत्यंत ग्लानि का आभास होता हैं 
और वे अपनी करनी की क्षमा याचना करते हैं 
लेकिन दुखी पिता शांतुनु महाराज दशरथ को श्राप देते हैं कि जिस तरह मैं शांतुनु, पुत्र वियोग में मरूँगा, उसी प्रकार तुम भी पुत्र वियोग में मरोगे . 
इतना कहकर दोनों माता- पिता अपने शरीर को त्याग मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं .



महाराज दशरथ श्राप मिलने से अत्यंत व्याकुल हो जाते हैं 
और कई वर्षो बाद जब उनके पुत्र राम का राज्य अभिषेक होता हैं, 
तब माता कैकई के वचन के कारण राम, सीता और लक्षमण को चौदह वर्षो का वनवास स्वीकार करना पड़ता हैं 
और इस तरह महाराज दशरथ की मृत्यु भी पुत्र वियोग में होती हैं . 
अपने अंतिम दिनों में उन्हें शांतुनु के कहे शब्द याद आते हैं और वे राम के वियोग में अपना शरीर त्याग देते






"श्रवण कुमार कथा" कहानी के मुख्य पात्र हैं:




श्रवण कुमार: एक समर्पित और निस्वार्थ पुत्र जो अपने अंधे माता-पिता की देखभाल करता है और उनके साथ तीर्थयात्रा पर जाता है, एक दुखद गलतफहमी के कारण दुर्भाग्यपूर्ण भाग्य का सामना करता है।




श्रवण कुमार के माता-पिता: बुजुर्ग और अंधे माता-पिता जो अपनी भलाई के लिए अपने बेटे पर निर्भर हैं और विभिन्न पवित्र स्थानों पर आशीर्वाद लेने के लिए उसके साथ तीर्थयात्रा पर निकलते हैं।



राजा दशरथ : जिन्होंने गलती से श्रवण कुमार पर तीर चला दिया, जिससे समर्पित पुत्र की दुखद मृत्यु हो गई। उसे अपने अनजाने कृत्य पर गहरा पछतावा है और वह अपने कृत्य के लिए प्रायश्चित चाहता है।






ये तीन पात्र कथा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, प्रेम, त्याग, भक्ति और गलतफहमी के परिणामों पर प्रकाश डालते हैं।




श्रवण कुमार की कहानी हमें कई मूल्यवान सबक सिखाती है, जिनमें से प्रत्येक का गहरा महत्व है:




पुत्र और भक्ति: यह कहानी पुत्र के गुण का उदाहरण देती है, जो कि बच्चों में अपने माता-पिता के प्रति गहरा सम्मान, प्यार और देखभाल है। अपने अंधे और बूढ़े माता-पिता की सेवा के लिए श्रवण कुमार का अटूट समर्पण हमारे माता-पिता को उनके बुढ़ापे में सम्मान और समर्थन देने के महत्व का एक शक्तिशाली उदाहरण है।




निस्वार्थता और त्याग: श्रवण कुमार की निस्वार्थता अपने माता-पिता की इच्छाओं को पूरा करने के लिए अपनी इच्छाओं और जरूरतों को अलग रखने की उनकी इच्छा में स्पष्ट है। उनका सर्वोच्च बलिदान, अपने माता-पिता के लिए पानी लाते समय अपने प्राणों की आहुति देना, उनकी भक्ति की सीमा और खुद से पहले दूसरों को रखने की इच्छा को दर्शाता है।




गलतफहमी के परिणाम: कहानी में घटनाओं का दुखद मोड़ एक गलतफहमी से उत्पन्न होता है। राजा दशरथ, पानी निकाले जाने की आवाज से अनजाने में श्रवण कुमार की मृत्यु का कारण बनते हैं। यह हमें स्पष्ट संचार और समझ के महत्व की याद दिलाता है, क्योंकि गलतफहमियों के विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं।




करुणा और क्षमा का महत्व: कहानी करुणा और क्षमा के महत्व पर भी प्रकाश डालती है। अपने बेटे की आकस्मिक हानि के बावजूद, श्रवण कुमार के माता-पिता दशरथ राजा के प्रति क्षमा का प्रदर्शन करते हैं। इसी प्रकार, राजा पश्चाताप से अभिभूत होकर, प्रायश्चित की आवश्यकता को स्वीकार करते हुए, अपने अनजाने कृत्य के लिए प्रायश्चित करना चाहते हैं।




कहानियों की शक्ति: श्रवण कुमार की कहानी पीढ़ियों से चली आ रही है, जिसने अनगिनत लोगों को पारिवारिक बंधनों को महत्व देने, निस्वार्थता का अभ्यास करने और प्रियजनों के लिए किए गए बलिदानों को संजोने के लिए प्रेरित किया है। यह समाज को नैतिक और नैतिक शिक्षा देने में कहानियों की स्थायी शक्ति को दर्शाता है।






कुल मिलाकर, श्रवण कुमार की कहानी उन मूलभूत मूल्यों की शाश्वत याद दिलाती है जो समाज को एक साथ रखते हैं - प्रेम, सम्मान, करुणा और निस्वार्थता। यह हमें अपने माता-पिता के साथ अपने संबंधों और हमारी देखभाल करने वालों को प्यार और समर्थन देने के महत्व पर विचार करने के लिए प्रोत्साहित करता है।




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