कामिक्स का सफरनामा भाग 2
the journey of comics part 2
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नमस्कार दोस्तों,
स्वागत है आपका कामिक्स की दुनिया के यादगार सफर में...
जैसा कि पिछले अंक में आपने पढ़ा
था मेरी कॉमिक्स जर्नी के बारे में
जैसा कि पिछली बार मैंने कहा था यह केवल एक इंट्रो है
दोस्तों मेरा नाम राजेश है, राजेश गांधी- मेरा जन्म पुस्तकों और किताबों के बीच हुआ है..
मतलब कि मेरे पिता की किताबों की दुकान थी जो गांधी बुक सेंटर, टीकमगढ़ के नाम से बस स्टैंड पर थी इसलिए मैं किताबों, पत्रिकाओं के बीच ही पला बढ़ा हुआ हूं और आज भी मैं और मेरा बेटा भी यहीं गांधी बुक सेंटर पर है बैठते हैं..
जब मैं छोटा था तो मेरे पापा मुझे किताबों में से कहानियां पढ़ कर सुनाया करते थे आगे जब कामिक्स आयीं तो कामिक्स पढ़कर सुनाते थे मुझे स्वयं पढ़ने में अटल लगती थी अतः में रोज रात को उनसे ही पढ़कर सुनाने को बोलता था..
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कामिक्स के सफर में रही बात स्मरण की तो जहां तक मुझे याद है लगभग 1980 के आसपास मैं दतिया अपनी बहन बेबी दीदी के पास घूमने गया था चूंकि हमारी दुकान बस स्टैंड पर थी तो पापा ने बस द्वारा दतिया मैं मेरे पास चार कामिक्स का एक सेट भेजा था..
हां दोस्तों यह कामिक्स थी.. गंगा चित्रकथा, ग्लेज यानी सादा पेपर पर ब्लैक एंड वाइट कॉमिक्स थी साईज बड़ा था और कीमत थी 60 पैसा प्रति कामिक्स ऊपर का पेज रंगीन था और अंदर स्केच ब्लैक एंड वाइट हुआ करते थे..
एक बात और दोस्तों पहले जो भी कॉमिक्स आती थी उनका नाम कामिक्स नहीं चित्रकथा हुआ करता था..
सभी बड़ी साइड में आती थी..
कुछ समय बाद एक और कामिक्स देखी मीनू चित्रकथा इसमें तीन कलर का इस्तेमाल हुआ था यह 80 पैसे की थी,
समय बढ़ता गया और साथ में में भी.. आगाज हुआ डायमंड कामिक्स का जिसमें एक कार्टूनिस्ट प्राण के किरदार चाचा चौधरी और रमन का..
चाचा चौधरी की कहानी दो या तीन पेज की होती थी और रमन की कहानी एक पेज की.. बाद में इनके किरदार बढ़ते गए और कहानी भी,
बाकी किरदारों में पिंकी, बिल्लू ,श्रीमती जी आदि थे..
हमारी शॉप पर नगर के सभी बच्चे आते थे और उनके अभिभावक भी डायमंड कॉमिक्स की वजह से बच्चे पढ़ना सीख जाते थे..
इसी बीच लगभग 1985 में अमर चित्र कथा पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ यह शायद मुंबई से आती थी इसका हमारे यहां एमपी में सीधा आना संभव नहीं था लेकिन कुछ एक अंक देखने को मिले थे...
अमर चित्र कथा हमारे देश की संस्कृति की धरोहर है इसके योगदान पर भी मैं आगे चर्चा करूंगा..
जो इसके बारे में जानते होंगे वह समझते होंगे...
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फिलहाल लौटते हैं 80 - 90 के दशक में..
times of india प्रकाशन द्वारा एक कामिक्स प्रकाशित होती थी इंद्रजाल कॉमिक्स (याद है आपको .. जिसने भी पड़ी हो कमेंट में जरूर बताना)
यह कामिक्स प्रति सप्ताह आती थी जिसके प्रमुख पात्र थे..
चलता फिरता प्रेत- वेताल (वही वेताल जिसे आप फेंटम के नाम से जानते हैं)
मैंड्रेक (जादूगर) प्लेस गार्डन आदि यह कामिक्स पतली सी रंगीन कामिक्स थी कीमत थी 60 पैसा जो बाद में 75 पैसा हो गया था...
दोस्तों राज कॉमिक्स का आगाज अभी दूर है..
अभी तो नूतन चित्रकथा,
प्रभात चित्रकथा, टिंकल आदि का आना बाकी है हां मनोज कामिक्स का भी
पर ये सब अगले अंक में...
तब तक के लिए विदा,
धन्यवाद,
आपका- राजेश गांधी
डिस्क्लेमर-
यह सब उपरोक्त जानकारी मेरी अपनी निजी अनुभव पर आधारित है
जो में कॉमिक्स का सफरनामा के रूप में प्रकाशित कर रहा हूं
समय इसके आगे पीछे होने या किसी प्रकाशन को शामिल ना कर पाना
मेरे स्मरण या उपलब्धता पर निर्भर करता है किसी व्यक्ति विशेष के सहमत होने या ना होने से मुझे आपत्ति नहीं है यह मेरे निजी विचार है...
आगामी अंकों में-
1 -किस प्रकार में नागराज और सुपर कमांडो ध्रुव से मिलने राज कॉमिक्स के प्रकाशन स्थल
बुराड़ी जा पहुंचा..
वहां पर मेरे साथ क्या हुआ..
2 -कॉमिक्स में एक क्रमशः सीक्वल की शुरुआत कहां से हुई...
ढेरों कामिक्स के विषय हैं उनके बारे में आगे बात करेंगे.. धन्यवाद
Hello Friends,
Welcome to the memorable journey of the world of comics…
As you read in the previous issue
Was about my comics journey
As I said last time this is just an intro
Friends my name is Rajesh, Rajesh Gandhi I was born among books and magazines...
Meaning that my father had a bookstore which was at the bus stand by the name of Gandhi Book Center, Tikamgarh, so I grew up among books, magazines, and even today I and my son also sit here at Gandhi Book Center...
When I was young, my father used to read me stories from books and when he came to comics, he used to read comics and I used to feel adamant in self-study, so I used to ask him to read it every night.
Remembering the journey of comics, as far as I remember, around 1980 I went to Datia to visit my sister Baby Didi, as our shop was at the bus stand, Papa got me a set of four comics by bus to Datia. Was sent...
Yes, friends, it was comics .. Ganga Chitra Katha, black and white comics on plain paper, the size was big and the price was 60 paise per comic. The top page was colored and the sketch inside was black and white.
One thing and friends, whatever comics used to come earlier were called Chitra Katha, not comics...
Everyone used to come on the big side...
After some time, I saw another comics menu. It used three colors in it, it was 80 paise,
As time progressed, it also began with .. Diamond comics in which uncle Chaudhary and Raman, a cartoonist Pran's character...
Chacha Chaudhary's story was of two or three pages and Raman's story was of one page... Later his characters grew and so did the story,
The rest of the characters were Pinky, Billu, Shrimati Ji, etc...
All the children of the city used to come to our shop and their parents also used to learn to read because of Diamond Comics.
Meanwhile, in about 1985, I got the privilege of reading Amar Chitra Katha, it probably came from Mumbai, it was not possible to come directly to our city, but some copies were seen.
Amar Chitra Katha is a heritage of our country's culture, I will also discuss its contribution further ..
Those who know about this will understand ...
Currently returns to the 80s - 90s ..
A comic was published by Times of India Publications Indrajal Comics (remember you whoever had it, tell me in comments)
These comics used to come every week with the leading characters...
The moving phantom Vetal (the same Vetal as you know by the name of Phantom)
Mandrake (magician) flash gardon etc. This comic was thin-colored comics, the price was 60 paise which later became 75 paise ...
Friends Raj Comics is yet to begin ..
Now the Nutan Chitra Katha,
Prabhat Chitra Katha, Tinkle, etc. are yet to come, yes even Manoj Comics
But all this in the next issue…
Goodbye till then,
Thank you,
Yours - Rajesh Gandhi
Disclaimer-
All of the above information is based on my own personal experience
Which I am publishing as a travelogue of comics
Time to be behind it or not to include any publication
Depending on my memory or availability, I do not object to a particular person agreeing or not. This is my personal opinion…
In the next issue-
1-In what type meet Nagraj and Super Commando Dhruv, the place of publication of Raj Comics
Go to Burari...
What happened to me there...
Where did a sequential sequel in 2-comics begin…
There are many topics of comics, we will talk about them further... Thanks
Rajesh Gandhi
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प्रमाणिकता - यही पोस्ट मेरी एक और वेब साइट (www.hindiroad.blogspot.com) पर भी उपलब्ध हे
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